रात मगन सुनसान पवन थी
दिल की चोटें क्रूर अगन सी
जला सकीं ना पर घायल कर गयी
भूली यादें बीते क्षण की
आज था फिर सुनसान किनारा वोही चांदनी फिर बिखरी थी
चाँद फिर मध्हम और शांत था लहरें फिर कोलाहल करती थी
आज न थी पर मिलन कि रात आज हरे नहीं वन के पात
पतझड़ वन में पतझड़ मन में , मीत नहीं था थामे हाथ
दिल की चोटें क्रूर अगन सी
जला सकीं ना पर घायल कर गयी
भूली यादें बीते क्षण की
आज था फिर सुनसान किनारा वोही चांदनी फिर बिखरी थी
चाँद फिर मध्हम और शांत था लहरें फिर कोलाहल करती थी
आज न थी पर मिलन कि रात आज हरे नहीं वन के पात
पतझड़ वन में पतझड़ मन में , मीत नहीं था थामे हाथ
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